Thursday, June 9, 2011

नवीनता


फिर आई एक नई सुबह, फिर आया एक नया दिन
मन की अविरत निर्झरी, फिर कुछ नविन विचारों में लीन

बहुत कुछ परिवर्तित हुआ, और बहुत कुछ है बाकी
स्मृतिओं के विस्तृत समुद्र में, क्षणिक परित्रिप्तियों की झांकी

सिद्धांतों का वृत्ताकार भंवर और उन्मुक्तता की दिशाविहीन दौड़
इनके बीच की पतली पगडण्डी ही, जाएगी पूर्णता की ओर

पतवार जब हो जाग्रति और विवेक, आस्था का हो दृढ मस्तूल
पाल श्रद्धा रूपी आँचल फैलाये, विक्षिप्त मौजों को करें निर्मूल

उठ जाग ओ कर्मठ मन, तज कर के सब व्यर्थ विहार
कर विश्वास अपने बल पर, तुझे दे रहा है पालनहार

प्रभात की सुनहरी लालिमा, छंट रही है पूरव में
नई चेतना का नया आलोक, बंट रहा है कण-कण में

खोजी बन कर देख ज़रा तू, फैला अपने दामन को
आलिंगन कर तन-मन में तू, सतत प्रवाहित प्राणों* को

*वातावरण में व्याप्त प्राण उर्जा (Life Force)

1 comment:

Vijaya said...

sarvaasya saranagati karna hai.