यह
बात तो निश्चित है ही की गौ-हत्या का उन्मूलन हो l परन्तु क्या यह विचारधारा केवल गौ
मांस के परहेज तक सीमित है? क्या अन्य पशुयों के मांस का सेवन उचित है? अथवा, क्या
गौ-माता को जीवित रखकर, उसपर विभिन्न प्रकार की औषधियों का भेदन कर, उसे एक व्यवसायिक
यन्त्र के रूप में उपयोग करना सही है? और यह सब क्यों? की वह अधिक से अधिक दूध दे
सके, जिससे मनुष्य मलाई, रबड़ी, लस्सी, मिठाई, पनीर...बनाकर अपने आवश्यकता से कहीं अधिक मात्रा
में उत्पादन व उपभोग कर अपने मुनाफ़ा एवं चर्बी की वृद्धि कर सकें?
प्रकृति
ने गौ को (कदाचित अन्य कई प्राणीयों को) यह उपहार दिया है की संतान उत्पत्ति के
पश्चात् उस माँ में शिशु की आवश्यकता से तीन गुना अधिक दुग्ध उत्पादन की क्षमता
होगी l इस कारण दुग्ध का सेवन यद्यपि कोई क्रूरता नहीं, परन्तु निश्चित रूप से ऋण की
भागीदारी है l उस ऋण को उतारने के लिए उद्यम करना है, मनुष्य का परम कर्तव्य l
क्या
गौ-मांस पवित्र है या अपवित्र? पशु तो मृत्यु के पश्चात् भी उपयोगी होता है l और
मृत्यु तो हर एक प्राणी की अंतिम गति है ही, परन्तु, “मृत्यु के बाद उपयोग और
उपयोग के लिए मृत्यु” में आकाश-पाताल का अंतर है l
न
ही कोई मांस अपवित्र है और न ही कोई पुष्प पवित्र l जो श्वेत-सुमनोहर पुष्पहार माँ
सरस्वती को अर्पण किया जाता है, वह सूख-गलकर दुर्गंधित हो जाने पर उसे तुरंत
विसर्जित कर देते हैं l उसी माँ के पूजन स्थल में जहाँ किसी भी प्रकार के मांस का
लाना निषिद्ध होता है, उन्हीं के श्री चरणों की प्रेरणा से, उनके सम्मुख, उन वाद्य
यंत्रों को साधा जाता है जिनमें से कई यन्त्र पशु के चर्म से ही बने हैं l केवल समय
का अंतर है...एक पहले काम आता है तो दूसरा बाद में l
इस
सम्पूर्ण विश्लेषण में मुख्य प्रश्न है – परिमाण, संख्या, मात्रा. कितना है उचित?
कितनी है आवश्यकता? कितने की है योग्यता? जब साधना का प्रारंभ करते है, तब भी मूल
में यही रहता है – संख्या. कितनी माला? कितने आवर्तन? आज के इस उपभोक्तावादी युग
के उपभोग की होड़ में हर मनुष्य को अपना प्रमाण निर्धारित करने की तथा उसका अनुमान
लगाने की प्रचेष्टा में प्रवृत्त होना, बुद्धिमानी है l
जहाँ
एक ओर ‘गौ-हत्या का उन्मूलन’, इस “यम” का अनुबंधन अपेक्षित है...’गौ-भोग का
नियंत्रण’ भी है एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण “नियम”...एवं इन्हीं मापदंडों के माध्यम
से ही सार्थक हो पायेगा हमारा ध्येय – “गौ-रक्षा” l
1 comment:
आपके विचार स्वागत योग्य हैं. इस विषय पर मेरे दो लेख प्रकाशित हो चुके हैं. एक नज़र उन पर डाल कर राय दें.
पहला लेख दूध पर और दूसरा मांसाहार पर है..
-कृष्ण वृहस्पति
http://http://bhoomeet.blogspot.in/2011/03/blog-post
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http://bhoomeet.blogspot.in/2013/04/blog-post.html
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